Day Dreaming: कहीं आपको भी तो दिन में सपने की आदत नहीं है, जानिए डे-ड्रीमिंग हमारे ब्रेन पर क्या असर डालती है
Day Dreaming: ख्वाब सिर्फ वह नहीं होते, जिन्हें हम सोते समय देखते हैं। दिन के उजाले में बैठे-बैठे अपने सपनों और फैंटेसी दुनिया में खो जाना भी ख्वाब देखना है। इसे डे-ड्रीमिंग कहा जाता है, जिसे हम हिंदी में दिवास्वप्न कहते हैं।
यह शब्द सुनकर मन में पहला ख्याल क्या आता है? अरे, यह तो समय की बर्बादी है। जिन्हें कुछ काम नहीं होता, वही बैठकर मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखा करते हैं।
लेकिन वैज्ञानिकों का इस बारे में कुछ और ही मानना है। हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी कहती है कि डे-ड्रीमिंग से न सिर्फ हमारी इमैजिनेशन और क्रिएटिविटी बढ़ती है, बल्कि हमारी सेहत पर भी इसका पॉजिटिव असर पड़ता है।
डे-ड्रीमिंग हमारे ब्रेन पर क्या असर डालती है
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने डे-ड्रीमिंग के दौरान दिमाग में होने वाले बदलावों का अध्ययन किया। अपनी स्टडी में उन्होंने पाया कि दिन में बैठे-बैठे यूं ही कुछ सोचने, सपने देखने के दौरान ब्रेन में न्यूरोप्लास्टिसिटी डेवलप होती है। यह दिमाग को किसी बदलाव को एडॉप्ट करने और उसके मुताबिक खुद को बदलने में मदद करती है।
इतना ही नहीं, वैज्ञानिकों ने पाया कि इससे सीखने की क्षमता और मेमोरी में भी इजाफा होता है। मतलब, अगर आप डे-ड्रीमिंग करते हैं तो आपके दिमाग के काम करने की क्षमता बढ़ सकती है।
भारत में भी इसे लेकर खूब बात हुई है। लेखक और शिक्षाशास्त्री गिजूभाई बधेका ने दिवास्वप्न (डे-ड्रीमिंग) को लेकर 1932 में गुजराती भाषा में एक किताब लिखी। उनका मानना था कि प्रोडक्टिविटी के नाम पर बच्चों को हर वक्त किसी काम में झोंके रखना सही नहीं है। उन्हें यूं ही बैठकर अपने साथ वक्त बिताने, खुद से बातें करने देना चाहिए। उन्होंने लिखा कि इस तरह सपने देखने से बच्चों की कल्पनाशीलता बढ़ती है। उनका दिमाग तेज होता है। उनकी सीखने-समझने की क्षमता में इजाफा होता है।
देश के जाने-माने शिक्षाशास्त्रियों में से एक गिजूभाई बधेका ने इसे करके भी देखा। उन्होंने प्राइमरी एजुकेशन के रुढ़िवादी ढर्रे को तोड़कर बच्चों को किस्से-कहानियों और खेलकूद के जरिए सिखाने का प्रयास किया। बच्चों में इसके पॉजिटिव बदलाव देखने को मिले। किताबी ज्ञान की जगह खेल-कूद, डे-ड्रीमिंग से बच्चों की सीखने की क्षमता में इजाफा हुआ। चाइल्ड साइकोलॉजी में यह प्रयोग दुनिया के अन्य देशों में भी सफल साबित हुआ।
डे-ड्रीमिंग न बीमारी, न समय की बर्बादी
हार्वर्ड की रिसर्च कहती है कि डे-ड्रीमिंग को किसी बीमारी की तरह देखना सही नहीं है। यह सोचने की एक सामान्य प्रक्रिया है। सरल शब्दों में कहें तो कहीं बैठे-बैठे दिमाग किसी पुरानी खूबसूरत याद या आने वाले सपने की तरफ चला जाता है।
साल 2016 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी में रिसर्चर्स ने पाया कि डे-ड्रीमिंग में लोग अकसर निगेटिव इमोशंस में डूबने की बजाय कल्पना की सुंदर दुनिया में खो जाते हैं। कई बार नए आइडियाज और किसी उलझे सवाल का जवाब भी इस प्रक्रिया में मिल सकता है।
क्या नकारात्मक सोच और दुख में डूबना भी डे ड्रीमिंग
आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि दिवास्वप्न देखते हुए जरूरी नहीं कि हम सिर्फ सुंदर बातें ही सोचें। कभी निगेटिव ख्याल भी आते हैं। लोग अकेले में बैठकर बुरी-बुरी कल्पनाएं करके रोते भी हैं। कई बार यह निगेटिव ड्रीमिंग घंटों, दिनों और हफ्तों भी चल सकती है। तो क्या ये सब भी डे-ड्रीमिंग है।
इसका जवाब है- नहीं। अगर सपनों और ख्यालों की दुनिया लंबी खिंच रही है और उससे लौटकर आप ज्यादा खुश और एनर्जेटिक नहीं महसूस कर रहे तो यह डे-ड्रीमिंग नहीं बल्कि मलाडाप्टिव डे-ड्रीमिंग है।
मलाडाप्टिव डे-ड्रीमिंग से कैसे बचें
डे-ड्रीमिंग पर ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स की एक रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में करीब 20 करोड़ लोग मलाडाप्टिव डे-ड्रीमिंग का शिकार हैं। अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है कि घंटों आप निगेटिव ख्यालों में खोए रहते हैं और चाहकर भी उससे निकल नहीं पा रहे हैं तो आपको सचेत हो जाने की जरूरत है। नीचे दी गई बातों पर गौर करें-
1. क्या निजी या प्रोफेशनल लाइफ में कोई परेशानी है।
2. क्या सेहत से संबंधित कोई परेशानी है।
3. क्या कोई चाइल्डहुड ट्रॉमा आपको परेशान कर रहा है।
4. अपनी समस्या को आइडेंटीफाई करें और डॉक्टर या काउंसिलर की मदद लें।
5. किसी भी स्थिति में समस्या को इग्नोर न करें।
I am working as an Editor in Bharat9 . Before this I worked as a television journalist with a demonstrated history of working in the media production industry (India News, India News Haryana, Sadhna News, Mhone News, Sadhna News Haryana, Khabarain abhi tak, Channel one News, News Nation). I have UGC-NET qualification and Master of Arts (M.A.) focused in Mass Communication from Kurukshetra University. Also done 2 years PG Diploma From Delhi University.