Haryana News: हरियाणा में आयोग नहीं कर रहे ये काम, सूबे की सरकार साल 2020 में पास करवा चुकी है बिल
Haryana News: हरियाणा में सभी न्यायालय, ट्रिब्यूनल, प्राधिकरण, आयोग, सरकारी कार्यालय तथा दूसरी स्वायत: संस्थाएं हरियाणा राजभाषा (संशोधन) विधेयक, 2020 की जमकर अवेहलना कर रहे हैं। किसी भी न्यायालय, आयोग में हिंदी भाषा में काम नहीं हो रहा है। हैरानी की बात है कि सरकार के इस अधिनियम को उसके अधिकारी ही मानने को तैयार नहीं है, आज भी अंग्रेजी भाषा का प्राथमिकता तथा हिंदी के प्रति उनके नकारात्मक रवैये की वजह से प्रदेश की जनता को सरकारी निर्णयों और आदेशों को पढऩे में दिक्कतें आ रही हैं, महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन आयागों का जनता से सीधा संबंध है, उनके यहां भी सारा कार्य अंग्रेजी भाषा में हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में स्पष्ट लिखा हुआ है कि हिंदी हमारी राजभाषा है, और सरकारी राजकाज की भाषा हिंदी होगी, हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, इस हिंदी पखवाड़े के दौरान उन अधिकारियों और कर्मचारियों को सम्मानित किया जाता है, जो अपना कार्य हिंदी में करते हैं। लेकिन, हरियाणा के किसी भी कार्यालय में अब न तो हिंदी दिवस मनाया जाता और सभी आयोगों का विभागीय कामकाज तथा आयोगों के सभी न्यायायिक आदेश अंग्रेजी भाषा में होते हैं। हैरानी की बात तो यह है वह अधिसूचना, नियम, विनियम भी हिंदी भाषा में नहीं होते जिनका जनता से सीधा सरोकार है।
हरियाणा ने सबसे पहले हरियाणा राजभाषा अधिनियम, 1969 ने 5 मार्च 1969 को अधिसूचित किया था कि प्रदेश के राजकाज की भाषा हिंदी होगी, उसके बाद 15 दिसंबर 2004 को इस अधिनियम में संशोधन करते हुए हिंदी को पहली राजकाज की भाषा और पंजाबी भाषा को दूसरी राजकाज की भाषा का दर्जा दिया, इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए 27 फरवरी 2020 को एक पहले के जारी अधिनियमों में संशोधन करते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि हिंदी भाषा को सरकारी कामकाज में तो प्रयोग करना अनिवार्य है साथ ही प्रदेश के न्यायालयों, प्राधिकरणों, आयोगों में सभी न्यायिक आदेश हिंदी में होंगे, इसके लिए यह बिल विधानसभा ने भी ध्वनिमत से पारित कर दिया, लेकिन आज तक इस अधिनियम की कहीं पर भी पालना नहीं हो रही है। देश के गृह मंत्रालय ने तो अलग से राजभाषा विभाग तक बनाया हुआ है, लेकिन हरियाणा राजभाषा के मामले में अपने बनाए अधिनियमों की पालना करने में पूरी तरह विफल साबित हुआ है।
यहां यह बतातें चलें कि हिंदी भाषा के प्रयोग को लेकर समय-समय पर प्रदेश के मुख्य सचिव की ओर से पत्र जारी होते रहते हैं, लेकिन उन पत्रों को कोई महत्व नहीं दिया जाता, कई आयोगों ने जो उसके पूर्ववर्ती अध्यक्ष ने जिन सार्वजनिक पत्रों को हिंदी में जारी किया हुआ था, उनको आते ही अंग्रेजी में कर दिया, सबसे पहले प्रदेश के मुख्य सचिव ने 25 मई 1993 को सभी सरकारी विभागों, स्वायत: संस्थानों को पत्र लिखा था कि सरकारी कार्य हिंदी में करें, उसके बाद 8 जून, 2016 को भी इसी तरह का एक पत्र आया जिसमें कहा गया कि हिंदी का न के बराबर प्रयोग हो रहा है, यह सही नहीं इसलिए अपने आदेश, अधिसूचना दोनों भाषाओं में करना अनिवार्य करें, यह भी लिखा हुआ है कि इन हिदायतों की अवेहलना करने पर दोषी अधिकारियों/कर्मचारियों के विरूद्ध कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद 1 फरवरी, 2018 को भी इसी तरह का एक पत्र जारी हुआ, लेकिन हिंदी के प्रति वही उदासीन रवैया देखने को मिला, सभी आयोगों की वेबसाइट खंगाली गई तो कहीं भी कोई अधिसूचना या न्यायिक आदेश हिंदी में नहीं मिला, इसके बाद 2 फरवरी 2019 को भी मुख्य सचिव की ओर से एक आदेश आया जिसमें कहा गया कि सभी अधिसूचना हिंदी भाषा में प्रकाशित करना अनिवार्य करें, अंत में 24 फरवरी 2020 को मुख्य सचिव ने आदेश जारी किए कि अधिसूचनाओं, विधायी नियमों को हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित करवाएं तथा सरकारी कार्यालयों में हिंदी भाषा का प्रयोग करना सुनिश्चित करवाएं, प्रदेश के नियंत्रक, मुद्रण एवं लेखन विभाग को कहा गया कि अधिसूचनाओं, विधायी अधिनियमों को हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित करें, लेकिन इस विभाग की वेबसाइट का अवलोकन किया तो यह पाया कि इसने भी हिंदी भाषा को प्राथमिता नहीं दी।
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